5 अगस्त को विधान सभा घेरने की तैयारी – युवा हैं अब आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार

The Ranchi News
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रांची:- झारखंड जनाधिकार महासभा के युवा कार्यकर्ताओं ने आज प्रेस क्लब, रांची में प्रेस वार्ता कर अपने पांच प्रमुख मांगों के साथ घोषणा कर कहा कि 5 अगस्त को राज्य-भर के युवा विधान सभा को घेरेंगे. प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस बात का गहरा दुख और आक्रोश है कि राज्य गठन के दशकों बाद भी झारखंडी युवा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सम्मानजनक रोज़गार से वंचित हैं और अन्य राज्यों में पलायन के लिए मजबूर हैं. यह झारखंड के युवाओं के साथ हो रहा घोर सामाजिक अन्याय है. हम इस विधानसभा के मॉनसून सत्र में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड सरकार से दो टूक सवाल पूछते हैं: आखिर स्थानीय नीति और नियोजन नीति पर अब तक चुप्पी क्यों है? युवाओं के भविष्य से यह खिलवाड़ कब तक रुकेगा?

संवैधानिक आरक्षण नीति की अनदेखी

रघुवर सरकार की जनविरोधी स्थानीयता नीति अब भी लागू है और छह साल की हेमंत सरकार के बावजूद इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है. दूसरी ओर, नियोजन नीति की अस्पष्टता ने भर्ती प्रक्रिया को जटिल और भेदभावपूर्ण बना दिया है. इसका ताज़ा उदाहरण पलामू, लातेहार और खूंटी जिले की चौकीदार बहाली है, जहां अनुसूचित जाति के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं की गई — यह साफ तौर पर संवैधानिक आरक्षण नीति की अनदेखी है. पलामू में 2017 से कार्यरत 251 चतुर्थ वर्गीय कर्मियों का सेवा विस्तार समाप्त कर देना और उन्हें स्थाई नियुक्ति न देना भी शासन की असंवेदनशीलता को दर्शाता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद निकाली गई विज्ञापन संख्या 1/2025 को स्थानीय नियमावली का हवाला देकर प्रभावहीन बना दिया गया — 35,000 से अधिक अभ्यर्थियों के साथ यह धोखा है, जो चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे थे. यह महज़ संयोग नहीं है कि 60% से अधिक सरकारी व निजी नौकरियों में बाहरी लोगों का दबदबा बना हुआ है (JSSC RTI के अनुसार). राज्य में भूमिहीन दलित युवा, आज भी जमीन और जाति प्रमाण पत्र के लिए दर-दर भटक रहे हैं.

पेपर लीक के चलते 2024 की JSSC-CGL की परीक्षाएं रद्द हुई थी

JSSC-CGL की जनवरी और सितंबर 2024 की परीक्षाएं पेपर लीक के चलते रद्द हुईं, हाई कोर्ट में CBI जांच की मांग के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. वहीं उत्पाद सिपाही भर्ती में नियमावली बदलने के कारण भर्ती प्रक्रिया ठप हो गई और इसमें 12 अभ्यर्थियों की असमय मौत हुई. इसी तरह, झारखंड सिपाही प्रतियोगिता परीक्षा-2023 के अंतर्गत 4919 पदों के लिए जारी विज्ञापन भी वापस ले लिया गया, जिससे हजारों उम्मीदवारों की मेहनत बेकार चली गई. हाई कोर्ट में CBI जांच की मांग के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. नियोजन की अस्पष्टता और परीक्षाओं की असफलता ने राज्य के युवाओं का सरकार और प्रणाली दोनों से विश्वास छीन लिया है.

हर साल लाखों झारखंडी युवा रोज़गार की तलाश में देश के विभिन्न राज्यों से पलायन करते है

ऐसी ही स्थिति सभी सरकारी विभागों की है. इतना ही नहीं, बल्कि पलायन, बेरोजगारी और भर्तियों की असमानता ने झारखंड के युवाओं की उम्मीदों को तोड़ दिया है. राज्य की बेरोजगारी दर 17% पार कर चुकी है, जो राष्ट्रीय औसत से तीन गुना अधिक है.हर साल लाखों झारखंडी युवा रोज़गार की तलाश में देश के विभिन्न राज्यों, जैसे दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब और केरल की ओर पलायन कर रहे हैं. प्रवासी श्रमिक सेल के मुताबिक प्रवासी श्रमिकों की संख्या 10 लाख से भी ज़्यादा होने का अनुमान है. झारखंड से पलायन करने वाले युवाओं को गंतव्य स्थानों पर शोषण, भेदभाव, अमानवीय कार्यदशाओं, स्थानीय श्रमिकों की तुलना में कम भुगतान और पहचान के संकट जैसे गंभीर सामाजिक अन्यायों का सामना करना पड़ता है.

राज्य में शिक्षा की स्थिति दयनीय

राज्य में शिक्षा की स्थिति दयनीय है. विश्वविद्यालयों और स्कूलों में लाखों पद खाली पड़े हैं| UDISE+ के अनुसार, राज्य के 7,900 से अधिक प्राथमिक सरकारी विद्यालयों में केवल एक शिक्षक है, जहाँ 3.8 लाख बच्चे पढ़ते हैं. 17,850 शिक्षक पद और 1.58 लाख से अधिक कुल सरकारी पद खाली पड़े हैं, लेकिन बहाली नहीं हो रही.

4,000 से अधिक शिक्षकों व कर्मचारियों के पद खाली

झारखंड की उच्च शिक्षा प्रणाली भी बिखराव के कगार पर है. रांची विश्वविद्यालय सहित राज्य के अधिकांश उच्च शिक्षण संस्थानों में 2008 के बाद कोई नियमित फैकल्टी नियुक्ति नहीं हुई है. 4,000 से अधिक शिक्षकों व कर्मचारियों के पद खाली हैं. SC/ST/OBC वर्गों के आरक्षित पद लंबे समय से खाली पड़े हैं और प्रमोशन नीति भी अधर में है. शोध और शिक्षण संस्थानों में स्थानीय प्रतिनिधित्व नगण्य है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, झारखंड में स्थापित निजी कंपनियों में केवल 21% रोज़गार ही झारखंडियों को मिला है, यह स्वीकार्य नहीं है! मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, झारखंड में स्थापित निजी कंपनियों में केवल 21% रोज़गार ही झारखंडियों को मिला है, यह स्वीकार्य नहीं है! यह तब और चिंताजनक है जब राज्य सरकार ने 40,000 रुपये प्रतिमाह से कम वेतन वाली नौकरियों में 75% आरक्षण झारखंडियों के लिए अनिवार्य किया है, लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है. यह स्थिति न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है बल्कि सामाजिक प्रतिनिधित्व को भी बाधित करती है. साथ ही, प्रमोशन में आरक्षण और 50% से अधिक आरक्षण सीमा की मांग लगातार उठती रही है, लेकिन सरकार इस पर भी चुप्पी साधे हुए है. ग्रामीण क्षेत्रों में बंद पड़े स्कूल, पर्याप्त शिक्षक न होना और स्थानीय भाषा आधारित शिक्षा की उपेक्षा, राज्य की नई पीढ़ी के लिए खतरे का संकेत हैं.

यह धरना सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि सरकार को चेतावनी

इन्हीं जनसमस्याओं के खिलाफ झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा 5 अगस्त 2025 को झारखंड विधानसभा के पीछे विशाल धरना का आह्वान किया जा रहा है. आज छह जिलों से आए छात्र-युवा प्रतिनिधि स्पष्ट कर चुके हैं कि यह धरना सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि सरकार को चेतावनी है: यदि अब भी नियोजन नीति, स्थानीय आरक्षण, शिक्षा सुधार, महिला और पिछड़े वर्गों को अवसर देने जैसे मुद्दों पर ठोस निर्णय नहीं हुआ, तो यह आंदोलन व्यापक होगा.यह केवल रोज़गार की नहीं, झारखंड की पहचान, सम्मान और अधिकार की लड़ाई है — और इसे अब दबाया नहीं जा सकता.

महासभा की प्रमुख मांगें हैं:

(1) रघुवर सरकार की स्थानीयता नीति को रद्द कर मूल गांव आधारित नीति बनाई जाए,

(2) स्थायी और विवादमुक्त नियोजन नीति बने,

(3) सभी रिक्त पदों पर स्थानीयों को प्राथमिकता मिले

(4) अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्गों और महिलाओं को बढ़ा हुआ आरक्षण मिले,

(5) भूमिहीन दलितों को जाति प्रमाण पत्र और जमीन देने की प्रक्रिया सरल की जाए, और इसके लिए शिविरों का आयोजन किया जाए.

(6) पलायन रोकने के लिए कौशल विकास, सामाजिक सुरक्षा और मज़दूर अधिकारों पर ठोस नीति बने.

(7) शोध और उच्च शिक्षा के संस्थानों में स्थानीय युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विशेष नीतियां बनाई जाएं.

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