राँची:- जहाँ सरकारी स्कूलों को लेकर अक्सर नकारात्मक धारणाएँ बनती रही हैं, वहीं कांके प्रखंड के राजकीयकृत प्राथमिक विद्यालय मुरुम ने एक नया इतिहास रच दिया है। डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती के अवसर पर विद्यालय परिसर में बाल समागम सह टीएलएम मेला का आयोजन किया गया, जो न केवल एक शैक्षणिक कार्यक्रम था, बल्कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था में आशा की नई किरण भी बना।
कार्यक्रम की सबसे खास बात यह रही कि मेले में *200 से अधिक टीएलएम (Teaching Learning Materials)* को प्रदर्शित किया गया, जो शून्य निवेश पर विद्यालय के प्रधान शिक्षक द्वारा तैयार किए गए थे। इन शिक्षण सामग्री को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित था कि सीमित संसाधनों में भी कितनी बड़ी रचनात्मकता और समर्पण छिपा हो सकता है।
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि *जिला शिक्षा अधीक्षक बादल राज, विशिष्ट अतिथि प्रधानाध्यापक अशोक प्रसाद सिंह एवं उप मुखिया जितेंद्र कुमार उपस्थित रहे।* कार्यक्रम की शुरुआत बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के चित्र पर पुष्प अर्पण और दीप प्रज्वलन से की गई।
*जिला शिक्षा अधीक्षक बादल राज* ने अपने संबोधन में कहा –
“मुरुम विद्यालय उन सभी धारणाओं को तोड़ रहा है जो सरकारी स्कूलों को लेकर लोगों के मन में बनी हैं। यहाँ का नवाचार राज्य के सभी विद्यालयों के लिए प्रेरणास्रोत है। इसी मॉडल पर अन्य विद्यालयों को भी तैयार किया जाएगा।”
*अशोक प्रसाद सिंह* ने विद्यालय को नवाचार और संस्कृति निर्माण का केंद्र बताते हुए कहा –
“यह विद्यालय जो कर रहा है, वह अनुकरणीय है। हर विद्यालय को इससे सीख लेनी चाहिए।”
*उप मुखिया जितेंद्र कुमार* ने भी भावुक होकर कहा –
“मैं वर्षों से इस विद्यालय को देख रहा हूँ और हर बार यहाँ कुछ नया देखने को मिलता है। मुरुम स्कूल हर बार एक नई उम्मीद लेकर आता है।”
कार्यक्रम में *JCERT से अनमोल रतन, पोखराज प्रसाद सिंहा, राजीव झा, संजय कुमार, विजय कुमार, परमानंद कुमार, अभय कुमार, शिवनाथ टोप्पो, सुमेश मिश्रा, पंकज कुमार दूबे, मीना देवी, सुनीता देवी सहित* कई अधिकारी और शिक्षक उपस्थित रहे।
इस अवसर पर *विद्यालय में नामांकन भी किया गया,* जिससे यह संदेश गया कि मुरुम स्कूल सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि भविष्य निर्माण की कार्यशाला बन चुका है।
गाँव के सभी बच्चे और अभिभावक मेले में शामिल हुए, जिससे यह आयोजन एक जनसमुदायिक उत्सव में बदल गया।
*मुरुम विद्यालय का यह प्रयास यह साबित करता है कि जब नीयत साफ हो और सोच सकारात्मक, तो सरकारी स्कूल भी प्रेरणा के प्रतीक बन सकते हैं।*